ख़ुदा के हर दर पे मिरे सज्दे सारे फ़िज़ूल गए, तुझे तो माँग लिया हम नसीब माँगना भूल गए ।
थोड़ी तिरी आँखों में थोड़ी मैखानों में गुज़रेगी, मुहब्बत अभी तो सर चढ़ी है धीरे–धीरे उतरेगी ।
मुस्तक़िल उनसे मेरी तक़रीरें होती रही, ख़ामोशियाँ चीखती रही और आवाज़ें सोती रही ।
इश्क़ में उनकी बेपरवाही इतनी सहनी पड़ी जो बातें महसूस करनी थी वो सारी कहनी पड़ी ।
तजुर्बा मुहब्बत का मिरे काम नहीं आया, उनकी कहानी में मेरा नाम नहीं आया ।